भगवान वामन की पूजन करने वाले भक्तों को कभी कष्ट नहीं होता : महंत राम पूजन

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बागबेड़ा में धूमधाम से मनाया गया वामन जयंती, सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होकर ग्रहण किया ग्रहण

जमशेदपुर (संवाददाता ):- बागबेड़ा के लकड़ी बगान स्थित श्री सप्तर्षि आश्रम सीता राम मंदिर में बुधवार को वामन जयंती धूमधाम से मनाई गई। इस मौके पर बिहार के आरा स्थित श्री त्रिदंडी स्वामी आश्रम के महंत श्री स्वामी ज्योति नारायणचार्य आए हुए थे। उनके द्वारा पूजा पूरे विधि विधान के साथ कराई गई। वहीं, सप्तर्षि आश्रम के महंत राम पूजन दास के नेतृत्व में आयोजित कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होकर प्रसाद ग्रहण किया। सीता राम मंदिर में सबसे पहले भगवान वामन की चित्र को स्थापित किया गया। इस दौरान भगवान को गाय का दूध से अभिषेक व वस्त्र और आभूषण से सुशोभित किया गया। इसके बाद विभिन्न प्रकार के फल और मिष्ठान का भोग लगाया गया। इसके बाद मंगल आरती की गई। आश्रम के महंत राम पूजन दास ने बताया की भगवान वामन की पूजन करने वाले भक्तों को कभी कष्ट नहीं होता। उन्हें भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान वामन के रूप में भगवान विष्णु ने माता आदिति के गर्भ में जन्म लिया था। उन्होंने कहा कि सृष्टि में धर्म की रक्षा के लिए भगवान वामन ने अवतार लिया। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान वामन भगवान विष्णु के पांचवें अवतार थे। उन्होंने कहा कि भगवान वामन ने प्रहलाद पौत्र राजा बलि का अभिमान तोड़ने के लिए तीन कदमों में तीनों लोक नाप दिए थे। भागवत पुराण में वर्णन किया गया है की अत्यंत बलशाली दैत्य भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद के पौत्र और दानवीर राजा होने के बावजूद राजा बलि एक अहंकारी राक्षस था। वह अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर देवताओं और ब्राह्मणों को डराया, धमकाया करता था। अत्यंत पराक्रमी और अजेय बलि अपने बल से स्वर्ग लोक, भू लोक और पाताल लोक का स्वामी बन गया। राजा बली का अभिमान तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने वामन के रूप में धरती पर अवतरित हुए। उन्होंने राजा बलि ने अपने दो पग में तीनों लोकों का नाप दिए थे। ऐसे में राजा बलि के पास अपने वचन पूरा करने का कोई विकल्प नहीं बचा था। अंत में राजा बलि ने भगवान के समान अपने सिर को आगे रख दिया। भगवान के उसके सिर पर पग रखते ही उनका पग छोटा हो गया। उन्होंने राजा बलि को मोक्ष का वरदान दिया। इस अवसर पर मनोज पांडे, आशीष कुमार, अमर झा, संघी भगत, जयप्रकाश यादव आदि उपस्थित थे।

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