तपिस से बचने के लिए मनाया जाता है सतुआन…पोइला वैशाख की ये है खास मान्यता …

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पूजा कुमारी, टेल्को

पर्व त्योहार :- यूं तो हर भारतीय पर्व प्रकृति से जुड़ा संस्कृति उत्सव आयोजन है। यहां सर्वत्र प्रकृति संस्कृति संग अनुष्ठानों की महत्ता होती है। किंतु लोकपर्व अपवाद है। वास्तव में ये लोकचेतना के वो पर्व है जहां परम्पराओं की महत्ता अनुष्ठान से अधिक है। यहां परम्पराओं संग पूजा का महत्व होता है। ये प्रकृति और परमात्मा से जुड़ाव का देशज तौर तरीका है। यहां आप सौभाग्य और कामना पूर्ति के लिए सहज भाव से पूजा आराधना करते है। ऐसा ही एक लोकपर्व जुड़ शीतल और सतुआन है। इस वर्ष यह पर्व 14 अप्रैल को मनाया जा रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार संग नेपाल के तराई क्षेत्र में इस उत्सव की बेहद धूम होती है। बिहार और नेपाल के मैथिली भाषी क्षेत्र मे यह जुड़ शीतल तो शेष जगह सतुआन नाम से प्रचलित है।

दशरथ, सोनारी

       बंगाली में, शब्द पोहेला का शाब्दिक अर्थ है ‘पहला’ और वैशाख (बंगाली कैलेंडर का पहला महीना)।
पहला बैसाख का त्योहार पूरे भारत में अलग-अलग नामों और परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। वहीं बंगाल में नव वर्ष ‘नबोबोरशो’ से प्रचलित है, जिसमें ‘नबो’ का मतलब नया और ‘बोरशो’ का मतलब वर्ष या साल होता है। इस खास उपलक्ष पर सभी एक-दूसरे को ‘शुभो नबोबोरशो’ कहकर नए साल की शुभकामनाएं व बधाईयां देते हैं।
आमतौर पर यह पर्व 14 या फिर 15 अप्रैल को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 15 अप्रैल को मनाया जा रहा है। इसके साथ ही बंगाली युग 1430 का शुभारंभ हो जाएगा। माना जाता है पहला बैशाख की शुरुआत मुगल काल से प्रारंभ हुई, जबकि कुछ का कहना है कि बंगाली युग की शुरुआत 7वीं शताब्दी में राजा शोशंगको के साथ हुई।
मान्यताएं ये भी है कि राजा अकबर ने चंद्र इस्लामिक कैलेंडर और सौर हिंदू कैलेंडर को मिलाकर बंगाली कैलेंडर की स्थापना की थी।
भारत के कुछ ग्रामीण हिस्सों में बंगाली हिंदू अपनी शुरुआत का श्रेय सम्राट विक्रमादित्य को देते हैं और धारणाएं हैं कि बंगाली कैलेंडर 593 CE में प्रारंभ हुआ था। प्राचीन काल में मुख्यतः कैलेंडर के जरिए ही राजस्व की वसूली की जाती थी। आजकल विदेशों में भी बंगालियों द्वारा पहला वैशाख मनाया जा रहा है, कोई भी प्रांत इससे अछूता नहीं है, भले ही भौगोलिक स्थिति भिन्न हो, इस अवसर का विशेष महत्व है।
यह त्योहार मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तरी उड़ीसा,त्रिपुरा,असम और बांग्लादेश में बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।गौरतलब है कि पोइला वैशाख बांग्लादेश की राजधानी ढाका में मनायी जाने वाली शोभायात्रा को यूनेस्को द्वारा सांस्कृतिक धरोहर की सूची में सम्मिलित किया गया है।
पूजा अर्चना व अनुष्ठान समस्त बंगाली समुदाय के लिए यह दिन बेहद खास होता है। सर्वप्रथम अहले सुबह नदी में स्नान करने की परंपरा है। अलौकिक सज्जा जैसे,घरों के मुख्य द्वार व मंदिरों में अल्पना (रंगोली) उकेरी जाती है। दिन की शुरुआत पूजा-अर्चना व अनुष्ठान से प्रारंभ करते हैं।
इसके साथ ही मंदिरों में भी पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना व पाठ की जाती है। इस दिन गौ पूजन करने का भी अनूठा रीति-रिवाज़ है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान गणेश और सुख-समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी की अराधना की जाती है। साथ ही सभी देवी-देवताओं की भी पूजा होती है।

बंगाली समुदाय इस विशेष दिन पर अपने सगे-संबंधियों, दोस्तों व रिश्तेदारों के संग उपहार और मिठाइयों का आदान-प्रदान कर नए साल के आगाज पर जश्न मनाते हैं। खासकर बच्चे एवं कनिष्ठ अपने माता-पिता व परिवार के वरिष्ठ और बड़े- बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं। विशेषत: सभी नये-नये कपड़े पहनते हैं, बच्चे हो या बुजुर्ग सभी रंग-बिरंगे परिधानों में सजते-संवरते हैं। पारंपरिक बंगाली पोशाक ज्यादा पसंद करते हैं, पुरुष धोती/पयजामा/लुंगी और कुर्ता/पंजाबी पहनते हैं, जबकि महिलाएं पारंपरिक लाल किनारों वाली श्वेत साड़ियां धारण करती हैं, महिलाएं खुद को सोने के आभूषणों से श्रृंगार करती हैं। युवतियाँ भी लाल और सफेद साड़ी पहनतीं और टिप (बिंदी), चूड़ी (चूड़ियां) और बालों को गजरे से सजाती हैं।

बंगालियों के लिए, पोइला बैसाख एक महत्वपूर्ण उत्सव है ,यह बांग्ला समुदाय के लिए काफी विशेष महत्व रखता है। सभी वित्तीय देनदारियों को रद्द करने का लक्ष्य रखा जाता हैं,मान्यता यह भी है कि के अनुसार चैत्र के आखिरी दिन जिसका कुछ भी बकाया हो, उसे पूरा कर शुभ माना जाता रहा है। क्योंकि यह एक नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत है, इस वित्तीय वर्ष में व्यापारी वर्ग के लोगों द्वारा नए व्यापारिक वर्ष की शुरुआत भी पोइला बैसाख से हो जाती है। स्वस्तिक या शुभ चिन्ह बही-खातों पर अंकित किया जाता है।
मेहमानों व अतिथियों का स्वागत पारंपरिक व्यंजनों से किया जाता है। मुख्य रूप से पहला बैसाख के दिन यहाँ पारंपरिक स्वादिष्ट व्यंजनों जैसे, पुलाव,बैगून-भाजा,आलू-भाजा,फिस- फ्राई,दाल,चिकन-करी,मटन कोसा,पोटोल-डोरमा,डाक-चिंगड़ी, इलिश भाजी (हिलसा मछली की सब्जी), आमावत व खजूर चटनी, विभिन्न प्रकार के भरते (चोखा),सादा- भात, मिष्टी दोई,संदेश, व रसोगुल्ला आदि तैयार किए जाते हैं। नववर्ष के खास मौके पर सभी लोग इन स्वादिष्ट व्यंजनों का जमकर लुत्फ उठाते हैं।
इस प्रकार पोइला बैसाख बड़े ही धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है , जो हमें हमारी जड़ों, हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा से जोड़े रखता है, और अपनत्व का संदेश लेकर आता है। यह उत्सव हमें एक नई शैली में एक नई जीवन शुरुआत करना सिखाता है, जो हमारी विरासत की पहचान है।साथ ही साथ विविधता और समावेशिता के इतिहास की भी व्याख्या करता है।
अंततः ,यह वैशाख महोत्सव विविधताओं में भी एकता को साकार करते हुए निश्चित ही इस देश के लोगों में एकता, अखंडता और अमन-शांति से समाहित कर देता है । एक सुखमय जीवन और खुशहाली के प्रतीक के रूप में परिलक्षित करती है।

कावेरी,मानगो

पोइला वैशाख अर्थात् बंगला नव वर्ष का पहला दिन होता है। इस दिन देशभर में हर जगह लोकगीतों के उत्सव के साथ मनाया जाता है। पहला वैशाख का मौसम अपने महान मूल्य और महत्व के लिए एक राष्ट्रव्यापी त्योहार बन गया है। लोग इस दिन को बहुत खुशी और रुचि के साथ मनाते हैं।
इस दिन बच्चे और युवा पीढ़ी बुजुर्गों के पैर छूते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं और साथ ही अपने रिश्तेदारों को मिठाई और अन्य उपहार देते हैं। मैं भी पूजा अर्चना कर बड़ों से आशीर्वाद लेती हूं। मुझे भी कई सारे उपहार मिलते हैं ,मैं अपने घर की सबसे छोटी हूं, इसलिए सभी लोग मुझे बहुत प्यार करते हैं। इस दिन घर में काफी चहल-पहल रहती है, मैं भी काफी व्यस्त रहती हूं। महिलाएं और पुरुष पारंपरिक लिबास पहनते हैं। मुझे भी बंगाली परिधान बेहद पसंद है। हमारी सोसाइटी में एक बंगाल क्लब है जहां विभिन्न सांस्कृतिक और मनोरंजक गतिविधियों का आयोजन होता है। ग्रामीण क्षेत्र हो अथवा शहरी क्षेत्र कोई प्रांत इस त्योहार से अछूता नहीं है। मेरे घर में,कई प्रकार के पारंपरिक स्वादिष्ट व्यंजनों जैसे, पुलाव, फ्राइड हिल्सा, पांत भात, , मांस, मछली, रसोगुल्ला, विभिन्न प्रकार के छेने की मिठाइयां आदि बनाई जाती है, हम सभी स्वादिष्ट व्यंजनों का भरपूर लुत्फ उठाते हैं।
शाम में पारंपरिक बंगाली परिधान से अलंकृत होकर सपरिवार मेला घूमने हर साल जाती हूं, मेले में आभूषण आदि खरीदती हूं। मैं मेले में बंगाली पंचांग भी खरीदती हूं, जिनमें बंगाली रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और त्योहारों के सभी वर्तमान अपडेट और शुभ तिथियां और अवसर शामिल होती है। इस दिन का महत्व अतुलनीय है।
वैसे तो हम कई त्योहार बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं ,लेकिन इस त्योहार को भी बड़े उत्साह और उमंग से मनाती हूं, क्योंकि यह बंगाली सम्वत नव वर्ष का सौगात अनेकों मनोवांछित खुशहाली लेकर आता है।

 

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