8 नवंबर से नहाय-खाय के साथ शुरू होगा चार दिवसीय छठ महापर्व

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बिक्रमगंज/रोहतास:- (राजू रंजन दुबे)। दीपावली के 6 दिन बाद से छठ पूजा का महापर्व शुरू हो जाता है । छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है । इस दिन व्रती सुबह तैयार होते हैं और घाट पर जाकर नदी में डुबकी लगाते हैं । जिसके बाद भोजन बनाया जाता है । उत्तर भारत में खासतौर से बिहार , झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाये जाने वाले इस महापर्व छठ को लेकर तैयारियां इन दिनों जोर शोर से हो रही हैं । छठ के पहले दिन यानी नहाय-खाय के साथ लोग गंगा नदी , नहरों , जलाशयों व तालाबों में डुबकी लगाकर या गंगा जल छिड़ककर सूर्य देव की पूजा-अर्चना के साथ पूजा की शुरुआत करते हैं । नहाय-खाय के दिन व्रती सुबह जल्दी उठकर नदी में डुबकी लगाते हैं जिसके बाद भोजन बनाया जाता है । आस्‍था और संयम का त्‍योहार माना जाता है । छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है । हिंदू पंचांग के मुताबिक छठ पूजा कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि से शुरू हो जाती है । यह पर्व चार दिनों चलता है । इस साल छठ पूजा 8 नवंबर से शुरू हो रहा है,यानी इस साल नहाय-खाय सोमवार से शुरू हो रहा है । इसके अगले दिन यानी 9 नवंबर को दिन खरना मनाया जाएगा । जबकि 10 नवंबर को डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा और अंत में 11 नवंबर की सुबह अस्ताचल यानी उगते हुए सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के साथ ही इस पावन पर्व का समापन हो जाएगा ।

नहाय खाय के साथ होती है छठ व्रत की शुरुआत: – नहाय – खाय की सुबह व्रती भोर बेला में उठते हैं और गंगा स्‍नान आदि करने के बाद सूर्य पूजा के साथ व्रत की शुरुआत करते हैं । इसके बाद चना दाल के साथ कद्दू-भात (कद्दू की सब्जी और चावल) तैयार किया जाता है और इसे ही खाया जाता है ।इसके साथ ही व्रती 36 घंटे के निर्जला व्रत को प्रारंभ करते हैं । नहाय खाए के साथ व्रती नियमों के साथ सात्विक जीवन जीते हैं और हर तरह की नकारात्‍मक भावनाएं जैसे लोभ, मोह, क्रोध आदि से खुद को दूर रखते हैं ।

नहाय-खाय के साथ इन नियमों का व्रती करते हैं पालन:- नहाय-खाय के दिन से व्रती को साफ और नए कपड़े पहनने चाहिए । नहाय खाए से छठ का समापन होने तक व्रती को जमीन पर ही सोना चाहिए । व्रती जमीन पर चटाई या चादर बिछाकर सो सकते हैं । घर में तामसिक और मांसाहार वर्जित है । इसलिए इस दिन से पहले ही घर पर मौजूद ऐसी चीजों को बाहर कर देना चाहिए और घर को साफ-सुथरा कर देना चाहिए । मदिरा पान, धुम्रपान आदि न करें । किसी भी तरह की बुरी आदतों को करने से बचें । साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना जरूरी होता है । पूजा की वस्तु का गंदा होना अच्छा नहीं माना जाता ।महिलाएं माथे पर सिंदूर जरूर लगाएं । सिंदूर नाक से लेकर पूरी मांग भरने की परंपरा है । किसी भी वस्तु को छूने से पहले हाथ जरूरत धोएं । छठ व्रत अगर संपूर्णता से किया जाए तो मान्यता है कि अच्छी फसल, परिवार की सुख-समद्धि, संतान की लंबी उम्र के लिए रखा गया यह व्रत पूर्ण होता है । पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठी मैया को ब्रह्मा की मानसपुत्री और भगवान सूर्य की बहन माना गया है ।छठी मैया निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं । संतानों की लंबी आयु के लिए भी यह पूजा की जाती है ।पौराणिक कथाओं के मुताबिक महाभारत के युद्ध के बाद अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे का वध कर दिया गया था । तब उसे बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को षष्ठी व्रत (छठ पूजा) रखने की सलाह दी थी ।

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