143वें सृजन संवाद में छाईं रहीं फ़्रेंज काफ़्का की प्रेमिकाएँ

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जमशेदपुर : ‘सृजन संवाद’ साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ने अपनी 143वीं संगोष्ठी का आयोजन किया, जो कि प्रसिद्ध लेखक फ्रांज काफ्का के जीवन और रचनाओं पर केंद्रित थी। यह कार्यक्रम 29 नवम्बर 2024, शुक्रवार को स्ट्रीमयार्ड और फेसबुक लाइव पर सवा घंटे तक हुआ, जिसमें काफ्का की चार प्रमुख प्रेमिकाओं के बारे में विस्तार से चर्चा की गई। इस कार्यक्रम में विशेष रूप से दो प्रमुख वक्ता – डॉ. अमरेन्द्र कुमार शर्मा और डॉ. याहिया इब्राहिम ने काफ्का की प्रेमिकाओं और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विजय शर्मा ने किया, जबकि स्ट्रीमयार्ड का संचालन गोरखपुर से अनुराग रंजन ने किया।

डॉ. विजय शर्मा ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए वक्ताओं और फेसबुक लाइव श्रोताओं का स्वागत किया और काफ्का के जीवन के प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की। अब तक सृजन संवाद ने कई प्रसिद्ध साहित्यकारों पर कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनमें अलका सरावगी, गरिमा श्रीवास्तव, नासिरा शर्मा, ओम निश्चल जैसे साहित्यकारों ने शिरकत की है।

काफ्का का जन्म 3 जुलाई 1883 को हुआ था और उनका साहित्य आज भी पाठकों और रचनाकारों के बीच गहरी छाप छोड़ता है। काफ्का ने अपनी रचनाओं को नष्ट कर देने का विचार किया था, लेकिन उनके दोस्त मैक्स ब्रोड ने उनकी रचनाओं को बचाकर प्रकाशित किया, जिससे काफ्का का साहित्यिक योगदान आज भी जीवित है। काफ्का ने अपने जीवन में नास्तिकता और समाजवाद को अपनाया था, और वह एक यहूदी थे, मगर उन्हें न यहूदी समाज और न ही जर्मन समाज में स्वीकार किया गया। यही कारण था कि उनका जीवन अजनबीपन और अकेलेपन से भरा था, जिसे उन्होंने अपनी रचनाओं में खूबसूरती से व्यक्त किया।

जमशेदपुर के करीम सिटी कॉलेज के इंग्लिश विभाग प्रमुख डॉ. याहिया इब्राहिम ने काफ्का के जीवन और रचनाओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि काफ्का का साहित्य समकालीन और कालजयी है, जो सत्ता, अदालती व्यवस्था और अस्तित्व संबंधी सवालों को उठाता है। काफ्का की रचनाओं में मानवीय पीड़ा, मानसिक द्वंद्व और अस्तित्व की बेबसी को गहराई से चित्रित किया गया है।

वर्धा स्थित महात्मा गांधी हिंदी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अमरेन्द्र कुमार शर्मा ने काफ्का की चार प्रमुख प्रेमिकाओं – फ़ेलिस बाउर, जूली, डोरा और मिलेना – के बारे में विस्तार से बताया। इन स्त्रियों ने काफ्का की रचनाओं को पोषित किया और उनके अस्तित्व को संवारा। काफ्का के जीवन में ये प्रेमिकाएँ एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, जिन्होंने काफ्का के मानसिक संघर्षों को समझा और उसकी सृजनात्मकता को बढ़ावा दिया।

इस दौरान डॉ. अमरेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि काफ्का कभी शादी करने के पक्ष में नहीं था, हालांकि उसने कई बार सगाई की, लेकिन उसने कभी परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी नहीं उठाई। वह अपने जीवन के अंतिम समय में भी अपनी प्रेमिकाओं से दूर नहीं था। काफ्का की प्रेमिकाओं ने ही उसे उसकी लेखनी के लिए प्रेरित किया और उसकी रचनाओं को जीवित रखा।

कार्यक्रम के समापन पर डॉ. विजय शर्मा ने वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया और कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से सृजन संवाद की श्रोताओं और दर्शकों को काफ्का के जीवन और उनके साहित्य से जुड़ी नई जानकारी मिली।

सृजन संवाद की 143वीं संगोष्ठी में कई लेखक, साहित्यकार और श्रोता फेसबुक लाइव पर जुड़े। इस कार्यक्रम में शामिल श्रोताओं में देहरादून के सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, जमशेदपुर के डॉ. मीनू रावत, ऋचा द्विवेदी, आशीष कुमार सिंह और अन्य प्रमुख साहित्य प्रेमी शामिल थे। इनकी टिप्पणियों ने कार्यक्रम को और अधिक सफल बना दिया। इस कार्यक्रम से सृजन संवाद के साथ कुछ नए सदस्य भी जुड़े, और यह कार्यक्रम काफ्का की जीवन यात्रा और रचनाओं को नए दृष्टिकोण से देखने का एक बेहतरीन अवसर साबित हुआ।

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