टाटा स्टील द्वारा दाखिल रिट पिटिसन और कर्मचारियों के एक समूह की तरफ से दाखिल रिट पेटिशन को लेकर हुई न्यायालय में बहस , अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और आकाश शर्मा ने रखा मजदूरो का पक्ष

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संवाददाता :-  टाटा स्टील द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में दाखिल रिट पेटिशन १४२५३/ २०१८ और कर्मचारियों के एक समूह की तरफ से दाखिल रिट पेटिशन १५५४१/ २०१८ में इंकैब कर्मचारियों के तरफ से आज बहस की शुरुआत करते हुए उनके अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने माननीय अदालत को बताया कि अगर प्राइवेट कंपनियों को बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियाँ अगर इस देश में बेचीं जाने लगेंगी तो बैंकिंग विनियमन अधिनियम, १९४९ (Banking Regulation Act, 1949), वित्तीय परिसंपत्तियों के सिक्योरिटीकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित के प्रवर्तन अधिनियम (Securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002), भारतीय रिजर्व बैंक अधिसूचना, संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी अदि की जरुरत ख़त्म हो जाएगी और बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियाँ को मामूली अनुबंध के आधार पर प्राइवेट कंपनियों को बेचा जा सकेगा। पर यह इस देश में नहीं होगा। क्योंकि अगर प्राइवेट कंपनियों को बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियाँ बेचीं जाने लगी तो इस देश के सभी असामाजिक तत्त्व वसूली एजेंट बन जायेंगें और आम लोगों खासतौर पर गरीबों, किसानों और मजदूरों से गैरकानूनी बसूली करने लगेंगे। अतः यह नहीं हो सकता है। उन्होंने खरदह कंपनी बनाम रेमोन और कंपनी मामले (1963) 3 SCR 183 और आई सी आई सी आई बनाम आधिकारिक परिसमापक, एपीएस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, (2010) 10 SCC  1 का हवाला देते हुआ कहा कि माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने उक्त मामलों में कहा है कि बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियाँ भारतीय अनुबंध अधिनियम, १८७२ (Indian Contract  Act,1872) के अनुसार केवल बैंकों से वित्तीय परिसंपत्तियों के सिक्योरिटीकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित के प्रवर्तन अधिनियम (Securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002) के तहत संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों या १३.०७.२००५ की भारतीय रिजर्व बैंक अधिसूचना के तहत बैंकों को ही बेचीं जा सकती हैं किसी प्राइवेट कंपनी को नहीं। उन्होंने आगे बताया कि कमला मिल्स के अधिवक्ता का यह कहना कि उन्होंने बैंकों की गैर निष्पादित परिसम्पत्तियों को संपत्ति स्थानांतरण अधिनियम, १८८२ (Transfer of Property Act, 1882) के तहत ख़रीदा था यह गलत है। ऐसा कोई कानून भारत में नहीं है। उन्होंने माननीय अदालत को आगे बताया कि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया ०९.०४.२००९ का आदेश बेतुका है जिसमें माननीय उच्च न्यायलय ने बैंक की जगह कंपनी को समझ कर आदेश पारित कर दिया है अतः उक्त आदेश से यह कानूनी कार्यवाही बिलकुल भी प्रभावित नहीं होती है। उन्होंने आगे कहा कि  माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ११.०९.२०१७ कि आदेश में यह नहीं कहा है कि एनसीएलटी बनने के बाद बैंकों की गैर निष्पादित परिसम्पतियों को प्राइवेट कंपनियों को बेचे जाने का मामला अब एनसीएलटी के अधिकार क्षेत्र में है। अधिवक्ता ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एक और आदेश का हवाला देते हुए कहा कि दिनांक १४.०५.२००९ को इसी मामले में सुनवाई करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि चुकी यह मसला इंकैब कंपनी को पुनर्जीवित करने का मामला है अतः बायफर (BIFR) पहले सारे लंबित मामलों की सुनवाई पूरी करेगी उसके बाद अगर जरुरत पड़ी तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय बैंकों की गैर निष्पादित परिसम्पतियों को प्राइवेट कंपनियों को बेचे जाने के मामले की सुनवाई करेगी। उस समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने नहीं कहा था कि उक्त मामले की सुनवाई बायफर (BIFR) करेगी। उन्होंने माननीय अदालत को आगे बताय कि सर्वोच्च न्यायालय ने सभी पक्षों को एनसीएलटी जाने के लिए इसलिए कहा क्योंकि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह कहा था कि अगर टाटा स्टील इंकैब कंपनी को अधिगृहित करती है तो आर आर केबल कंपनी ने बैंकों को निष्पादित परिसम्पत्तियों के लिए जो पैसा दिया है यह उसे वापस किया जायेगा। उन्होंने माननीय अदालत को आगे बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय में यह मसला नहीं था कि बैंकों की निष्पादित परिसम्पत्तियों को बैंकों से संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी, संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी से आर आर केबल कंपनी को स्थानांतरित किया गया और उसके बाद दो बाहरी कंपनियों कमला मिल्स और फसका प्राइवेट लिमिटेड जो बायफर (BIFR) में नहीं थी उनको स्थानांतरित किया गया है। उन्होंने माननीय अदालत को बताया कि माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय और माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस मसले का फैसला नहीं किया कि बैंकों की निष्पादित परिसम्पत्तियों को प्राइवेट कंपनियों को बेचा जा सकता है या नहीं। अतः कमला मिल्स कंपनी के अधिवक्ता ने माननीय अदालत को गुमराह किया है। अंत में अधिवक्ता ने माननीय अदालत को सरदार एसोसिएट्स और अन्य बनाम पंजाब और सिंध बैंक और अन्य (2009) 8 SCC 257 मामले का हवाला देते हुआ बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक की अधिसूचना का उल्लंघन होने पर माननीय उच्च न्यायालय में रिट दायर किया जा सकता है और इस मामले में कमला मिल्स के अधिवक्ता ने जो कहा है वह गलत है। इसी के साथ इंकैब मजदूरों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने अपनी बहस समाप्त कर दी। आज की हियरिंग में मजदूरों की तरफ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और आकाश शर्मा ने हिस्सा लिया।

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