जब तक ना देश का अंतिम महिला सशक्त और सुरक्षित; तब तक स्वर्ण भारत का सपना असंभव- अभिषेक डे

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जमशेदपुर (संवाददाता ):-आज की इस आधुनिक भारत में जहां महिलाएं हर क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ रही है, इंडिपेंडेंट है और सशक्त बनते जा रही है तो वहीं आज के समय में भी दुर्भाग्यवश देश में कई मां-बाप ऐसे भी है जो बेटी के जन्म होने पर शोक मनाते हैं अन्यथा भ्रूण हत्या में लिप्त है। कई ऐसे मां बाप है जिन्हें बेटी होने का डर सताता है। हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि आखिर ऐसी परिस्थिति क्यों उत्पन्न होती है जिससे मां बाप को बेटी होने का भय हो। अगर देखा जाए तो इसका जिम्मेदार समाज खुद है। जब तक ना समाज खुद अपने भीतर परिवर्तन लाकर दहेज प्रथा, बलात्कार, कम उम्र में शादी, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को बाहर काम करने जाने से रोक, पीरियड्स के दौरान अनाप-शनाप नियम जैसी अंधविश्वास एवं अपराध को पूर्ण समाप्त नहीं करेगी, तब तक बेटी होने का भय विशेषकर भारत के उन क्षेत्रों में जहां शिक्षा की कमी है, वहां भ्रूण हत्या पर रोक लगाना असंभव है। अभिषेक डे का कहना है अगर लोग महिलाओं को गलत नजर से देखेंगे दहेज प्रथा को बढ़ावा देंगे अंधविश्वासी बनेंगे तो कहते हैं ना समय का चक्र अपने तरफ ही घूम कर आता है इसलिए स्वाभाविक है कि खुद बाप बनने पर बेटी होने का डर तो सताएगा ही। किसी भी महिला की तरफ गलत नजर से देखने के पहले सर्वप्रथम अपनी मां के बारे में सोचनी चाहिए जिन्होंने मौत की गोदी में खेल कर एक नया जीवन दिया।आज भी कई लोग महिलाओं की छोटे कपड़े पर टिप्पणी करती है वास्तव में कोई चीज छोटी या बड़ी नहीं होती छोटी होती है, अगर कुछ छोटी या बड़ी होती है तो वह इंसान की मानसिकता होती है। इसलिए मेरा मानना है कि महिलाओं के कपड़ों पर उंगली उठाने के पहले व्यक्ति को अपनी गिरेबान में झांकनी चाहिए।सौ बात की एक बात जब तक ना देश की सभी महिलाएं पूर्ण सशक्त और सुरक्षित ना हो जाती तब तक देश का विकास और स्वर्ण भारत का सपना अधूरा ही रहेगा।

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