आदिवासी कुड़मि समुदाय के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए दायर की गई है रिट याचिका

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1931 तक की जनगणना में कुड़मि समुदाय आदिम जनजाति की सूची में शामिल थी ।
जमशेदपुर (संवाददाता ):-झारखण्ड में कुड़मि समुदाय दरअसल आदिवासी यानि अनुसूचित जन जाति है और इसके कई प्रामाणिक तथ्य मौजूद हैं. वर्ष 1913 के भारत सरकार के गजट में स्पष्ट रूप से कुड़मि समुदाय अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल था और 1931 तक की जनगणना में भी कुड़मि समुदाय को आदिम जनजाति की सूची में शामिल रखा गया था. फिर वर्ष 1950 में बनी अनुसूचित जनजाति की सूची से बिना किसी पर्याप्त अध्ययन और रिपोर्ट हासिल किए हटा दिया गया. उक्त बातें आज 15 मई को गोलमुरी स्थित केबुल वेलफेयर क्लब हॉल में झारखण्ड एबओरिजिनल कुड़मि पंच द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान लगातार पिछले 50 सालों से कुड़मि समुदाय और कुड़माली भाषा-संस्कृति को लेकर संघर्ष करते आ रहे डॉ. विद्या भूषण माहतो ने कही. उन्होंने कहा कि जब सरकार से न्याय नहीं मिला तो झारखण्ड हाई कोर्ट की शरण में हम गए – डॉ. बी बी. महतो उन्होंने कहा कि इसको लेकर कई दशकों से संघर्ष चल रहा है. भारत सरकार के सम्बद्ध मंत्रालय एवं महामहिम राष्ट्रपति तक को आवेदन दिया गया. सरकार ने झारखण्ड के कुड़मि समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग को खारिज़ करते हुए यह कहा कि नए सिरे से मजबूती से अपने तथ्यों के साथ आइए. जब सरकार से न्याय नहीं मिला तो झारखण्ड एबओरिजिनल कुड़मि पंच ने झारखण्ड हाई कोर्ट में एक रिट याचिका पिछले साल दायर की थी, जिसकी पहली सुनवाई कुछ दिनों पूर्व हुई है.

कुड़मि भी आदिवासी है. इसके प्रमाण झारखण्ड हाई कोर्ट में प्रस्तुत किए गए – अधिवक्ता अखिलेश

कलकत्ता हाई कोर्ट के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव झारखण्ड एबओरिजिनल कुड़मि पंच की तरफ से इस केस की पैरवी कर रहे हैं. अधिवक्ता अखिलेश ने बताया कि तमाम तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए झारखण्ड के कुड़मि समुदाय को न्याय दिलाने के लिए वकालत में तकरीर जारी है. अधिवक्ता अखिलेश ने बताया कि जिस प्रकार झारखण्ड में संताल समेत अन्य जनजातियां आदिवासी हैं, उसी प्रकार कुड़मि भी आदिवासी है. इसके कई प्रमाण हैं और वही प्रमाण झारखण्ड हाई कोर्ट में प्रस्तुत किए गए. उन्होंने इस समुदाय की भाषा और इसकी जेनेटिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर कर यह दलील दी, कि यह बहुत ही पुख्ता सबुत हैं। उन्होंने कहा कि मातृ पक्ष के डीएनए की जांच में माईटोकोन्ड्रियल डीएनए में हैपलोग्रुप M और M2 केंद्रित रूप से 93% तक झारखंड के कुड़मियों में मिला उससे यह ज्ञात होता है कि ये होविनियन समुदाय के हैं और इनका उद्भव 65 000 से 54,000 के बीच हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि पितृ पक्ष के डीएनए की जांच में Y क्रोमोजोम O2a है जो झारखंड के अस्ट्रो एसियाटिक भाषा भाषी लोगों का जनेटिक हस्ताक्षर है अतः यह स्पष्ट कि कुड़मी आदिवासी हैं।

किसी समुदाय की पहचान तय करने में महज़ वर्तनी के चलते झारखण्ड के कुड़मि समुदाय को असल पहचान खोनी पड़ी है – प्रसेनजीत काछिमा

प्रेस वार्ता में मौजूद प्रसेनजीत काछिमा ने बताया कि महज़ वर्तनी के चलते झारखण्ड के कुड़मि समुदाय को अपनी असल पहचान खोनी पड़ी है. बिहार, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में कुर्मी, कुरमी आदि संज्ञा से परिभाषित की जाती हैं, जबकि झारखण्ड के छोटानागपुर पठारी क्षेत्र के कुड़मि समुदाय की किसी भी रूप में कोई समानता नहीं है.

कुड़मि समुदाय के साथ बिना किसी कारण और आधार के अन्याय हो रहा है – अरविन्द अंजुम
प्रेस वार्ता को संचालित करते हुए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता अरविन्द अंजुम ने कहा, कि लम्बे समय से कुड़मि समुदाय के साथ बिना किसी कारण और आधार के अन्याय हो रहा है. इस समुदाय से उसका हक मारा जा रहा है. पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए  उन्होंने कहा कि झारखण्ड एबओरिजिनल कुड़मि पंच की फिलहाल तो मांग यह है कि कुड़मि समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाय. सिर्फ आशंकाओं के आधार पर किसी भी समुदाय पर हो रहे अन्याय को स्वीकार नहीं किया जा सकता। आदिवासी कुडमि समुदाय दुर्घटना का शिकार हुआ है और इसका समाधान करना न्याय के लिए जरूरी है।

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