जनजातीय महिलाएं संस्कृति की संरक्षिका , वैश्विक पटल पर लाना आवश्यक :- अर्जुन मुंडा

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जमशेदपुर :- आज दिनांक 3 अक्टूबर 2021 को गोलमुरी स्थित ए.बी.एम महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित ” समाज के सशक्तिकरण में अनुसूचित जाति जनजातीय महिलाओं का योगदान: वैश्विक परिदृश्य में” विषयक तीन दिवसीय ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय अंतर विषय सम्मेलन का समापन समारोह संपन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ जमशेदपुर महिला महाविद्यालय के संगीत विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर सनातन दीप के मधुर गीत से हुआ। तत्पश्चात प्राचार्या प्रो. मुदिता चंद्रा ने सम्मेलन में उपस्थित सभी प्रतिभागियों तथा विद्वत जनों का स्वागत किया। साथ ही कार्यक्रम में सम्मिलित होकर इसे सफल बनाने के लिए आभार व्यक्त किया। डॉ. किरण तिवारी (सहायक प्राध्यापिका, महिला महाविद्यालय, रांची)ने  विशिष्ट वक्ता अमेरिका की इला प्रसाद का परिचय दिया। डॉ. इला प्रसाद (अमेरिका)  ने अपने वक्तव्य में कहा कि नारी सशक्तिकरण जैसे विचारणीय शब्द पश्चिम देशों की देन है। भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही नारी का गरिमामयी स्थान रहा है ।डॉ. इला प्रसाद ने अपने महत्वपूर्ण वक्तव्य में भारत से बाहर बसे जनजातियों का भी परिचय दिया और कहा कि संसार की समस्त जनजातियों का मूल उद्देश्य है“प्रकृति से जुड़े रहना”। उन्होंने बताया कि अमेरिकी जनजातियों का संघर्ष भिन्न है।

यहां की जनजातियां सामान्य जन -समुदाय के क्षेत्रों से अलग निवास करती हैं। कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने संघर्षों से जूझकर समाज और राष्ट्र उत्थान हेतु सराहनीय कार्य किया है ।जनजातीय महिला सुसान ला फ्लेशच (डॉक्टर) एलिजा बर्टन (वकील) आइरिन बेडार्ड, जूलिया जोन्स (अभिनय) आदि केंद्र में रहीं |कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री अर्जुन मुंडा माननीय केंदीय मंत्री, भारत सरकार   उपस्थित थे। मंत्री जी ने अपने वक्तव्य में नारी को महत्त्व देते हुए कहा कि नारी के योगदान के बिना कोई कार्य संपन्न नहीं होता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जनजातीय समुदाय अपनी संस्कृति तथा परंपराओं का पालन करते हुए उन्हें बचाए रखना चाहते हैं। जनजातियों का वैश्विक फलक पर, वैश्विक चुनौतियों की दृष्टि से  विकास होना अपेक्षित है।मंत्री जी ने यह भी कहा कि भारतीय समाज की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक फलक पर प्रतिबिंबित करने के लिए सभी समुदायों को मिलकर इस दिशा में प्रयास करना चाहिए।कार्यक्रम में उपस्थित शोध धारा के संपादक डॉ. राजेश पांडे ने संपादकीय संबोधन दिया जिसमें उन्होंने प्रतिभागियों को शोध की सूक्ष्म बारीकियों से अवगत कराते हुए यह कहा कि शोध की स्थापना से ही राष्ट्र की राजनीतिक, धार्मिक ,सांस्कृतिक मान्यताओं का निर्धारण होता है।

शोध के विषय पुराने अथवा सामान्य हो सकते हैं किंतु उस में वर्णित वस्तु सदैव नवीन होने चाहिए ।कार्यक्रम में संरक्षक संबोधन हेतु कोल्हन विश्वविद्यालय चाईबासा के कुलपति प्रो. श्री गंगाधर पंडा  उपस्थित थे। कुलपति महोदय ने अपने वक्तव्य में जनजातीय संस्कृति के महत्व का वर्णन करते हुए बताया की जगन्नाथ पूरी में किसी जाति धर्म का भेदभाव किए बिना ही पूजा अर्चना होती है | इससे जुडी जनजातीय महिला की लोककथा पर भी प्रकाश डाला | कार्यक्रम के आयोजन समिति द्वारा प्रतिभागी मंतव्य भी आमंत्रित किए गए। प्रतिभागी मंतव्य में डॉ. ज्योति ढोले (मध्य प्रदेश), तथा श्रीमती आशारानी पटनायक (छ. ग.) ने कार्यक्रम में चयनित विषयों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से महिलाओं के कर्म को प्रकाश में लाया गया जो समय के पन्नो में छिपी हुयी थी | साथ ही उन्होंने भविष्य में इसी तरह के सम्मेलन आयोजित करने का आग्रह किया है।इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में सम्मिलित सभी अतिथियों के प्रति कोल्हान विश्वविद्यालय के कुल सचिव ने आभार व्यक्त किया, मंत्री महोदय को विशेष आभार दिया क्योंकि उनकी उपस्थिति से ए.बी.एम महाविद्यालय ही नही कोल्हान विश्वविद्यालय भी गौरवान्वित हुआ | साथ ही अमेरिका से जुडी इला प्रसाद जी को भी आभार देते हुए कहा कि वक्तव्य हमारी आँखे खोलता है |बेहतर रूप से तकनिकी व्यवस्था के संचालन हेतु भवेश कुमार एवं कन्हैया जी की सराहना की |प्राचार्या प्रो.मुदिता चंद्रा तथा सम्पूर्ण आयोजन समिति को बधाई देते हुए कार्यक्रम की सराहना की।कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ अवध बिहारी पुरान ने किया |

सम्मेलन में प्राप्त आलेखों  में से पांच आलेखों को उत्कृष्ट घोषित किया गया  –

जिनके नाम हैं – रश्मि सिंह, शिल्पी सुमन साहू, श्रीमती मीरा मुंडा, आशारानी पटनायक, अरुणा कुमारी

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