

न्यूजभारत20 डेस्क:- दिल्ली हाईकोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण और शहरी विकास के बीच संतुलन साधते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में खड़े 26 पेड़ों को काटने के बजाय ट्रांसप्लांट (स्थानांतरित) करने की अनुमति दे दी है। यह फैसला पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक पहल माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट परिसर में कुछ नए भवनों और सुविधाओं के निर्माण के लिए जगह की आवश्यकता थी। प्रस्तावित क्षेत्र में 26 पेड़ स्थित थे, जिन्हें काटे जाने की योजना बनाई गई थी। इस पर पर्यावरण प्रेमियों और एनजीओ ने आपत्ति जताई और मामला हाईकोर्ट पहुंचा। दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी जाएगी, बल्कि उन्हें वैज्ञानिक तरीके से दूसरी जगह ट्रांसप्लांट किया जाए।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ट्रांसप्लांट की पूरी प्रक्रिया मान्यता प्राप्त एजेंसी की देखरेख में होनी चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाए कि पेड़ जीवित रहें और अच्छी तरह से पनपें। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग को निर्देश दिया है कि वे ट्रांसप्लांट प्रक्रिया की निगरानी करें और नियमित रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करें। साथ ही, अगर किसी भी पेड़ की स्थिति बिगड़ती है तो तत्काल वैकल्पिक उपाय किए जाएं। ग्रीन दिल्ली अभियान से जुड़ीं पर्यावरण कार्यकर्ता अनु गुप्ता ने कहा, “यह फैसला दिखाता है कि विकास जरूरी है लेकिन पर्यावरण के साथ समझौता किए बिना। पेड़ों को ट्रांसप्लांट करना एक जिम्मेदार और संवेदनशील निर्णय है।” दिल्ली-एनसीआर में पहले भी कई प्रोजेक्ट्स के दौरान पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया गया है, हालांकि कुछ मामलों में सफलता की दर कम रही है। इस बार हाईकोर्ट ने खास जोर दिया है कि पेड़ों की जीवित रहने की दर की निगरानी हो और ट्रांसप्लांट के बाद कम से कम 2 वर्षों तक देखभाल सुनिश्चित की जाए।