

न्यूजभारत20 डेस्क:- तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली दलित छात्रा के साथ शर्मनाक भेदभाव का मामला सामने आया है। आरोप है कि छात्रा को पीरियड्स (माहवारी) होने के कारण क्लासरूम से बाहर बैठा दिया गया और पूरे दिन उसे कक्षा में प्रवेश नहीं करने दिया गया। यह घटना सामाजिक संवेदनाओं को झकझोरने वाली है, जिसमें न केवल महिला स्वास्थ्य बल्कि जातिगत भेदभाव का गंभीर पहलू भी उजागर हुआ है। छात्रा के परिजनों ने स्कूल प्रशासन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है और आरोप लगाया है कि उनकी बेटी के साथ जातिगत आधार पर भेदभाव हुआ। जानकारी के अनुसार, पीड़ित छात्रा को जब पीरियड्स शुरू हुए, तो उसने क्लास टीचर से मदद मांगी। आरोप है कि इसके जवाब में टीचर ने उसे क्लास से बाहर बैठने को कह दिया और यह भी कहा कि वह “गंदी हालत” में है। छात्रा ने स्कूल में उपलब्ध सैनिटरी सुविधाओं की कमी की भी बात कही है।

घटना सामने आने के बाद स्थानीय सामाजिक संगठनों और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस कृत्य की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह घटना न केवल महिलाओं के शरीर से जुड़ी सामान्य प्रक्रिया को लेकर समाज में व्याप्त गलत धारणाओं को दर्शाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आज भी दलित बच्चों को शिक्षा व्यवस्था में बराबरी नहीं मिल रही है। शिकायत मिलने के बाद शिक्षा विभाग ने जांच के आदेश दे दिए हैं। ज़िला शिक्षा अधिकारी (DEO) ने कहा है कि मामले की जांच एक स्वतंत्र समिति द्वारा की जा रही है और दोषी पाए जाने पर संबंधित शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। “स्कूल एक सुरक्षित और समावेशी स्थान होना चाहिए। किसी भी छात्रा के साथ ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य है,” अधिकारी ने कहा।
यह मामला एक बार फिर महिला स्वास्थ्य, माहवारी के प्रति समाज की सोच और शिक्षा संस्थानों में संवेदनशीलता की कमी को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूली पाठ्यक्रम में पीरियड्स से जुड़े विषयों को सहजता से शामिल करना और शिक्षक-शिक्षिकाओं को इस विषय पर प्रशिक्षित करना समय की मांग है। कोयंबटूर की यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आज भी भारत के कई हिस्सों में माहवारी जैसी सामान्य जैविक प्रक्रिया को लेकर कितनी अज्ञानता और असंवेदनशीलता है। खासकर जब मामला किसी दलित छात्रा से जुड़ा हो, तो यह दोहरे भेदभाव की तरफ इशारा करता है।