भक्ति और शक्ति का संतुलन हैं गुरू तेगबहादुर जी, वीमेंस कॉलेज में सिख गुरू तेगबहादुर जी के चार सौवें प्रकाश पर्व पर वेबिनार संपन्न

Spread the love

जमशेदपुर: वीमेंस कॉलेज में शनिवार को नौवें सिख गुरू तेगबहादुर जी के चार सौवें प्रकाश पर्व के अवसर पर वेबिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की मुख्य आयोजक केयू की पूर्व कुलपति सह वीमेंस कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर शुक्ला महांती ने स्वागत संबोधन करते हुए कहा कि गुरु तेगबहादुर जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि कोई भी सफलता अंतिम नहीं होती और कोई भी विफलता घातक नहीं होती। व्यक्ति की पहचान विपरीत स्थितियों में उसके द्वारा दिखाये गये साहस से होती है। गुरु तेगबहादुर का समय भी विपरीत था औल आज भी समय संकट से भरा है। हमारी पहचान हमारे साहस और धैर्य से होगी। उन्होंने जानकारी दी कि एआईसीटीई के निर्देश के आलोक में वीमेंस कॉलेज गुरु तेगबहादुर जी के जीवन और उनके संदेशों की वर्तमान प्रासंगिकता विषय पर राज़्य स्तरीय निबंध प्रतियोगिता का आयोजन कर रहा है। राज्य स्तरीय पुरस्कार के अलावा जिला स्तरीय पुरस्कार भी दिये जाएंगे। सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागिता वाले संस्थान को पुरस्कृत किया जाएगा। सभी प्रतिभागियों को ई प्रमाणपत्र निर्गत किया जाएगा। काॅलेज की वेबसाइट पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध करा दी गई है। उन्होंने बताया कि अब तक वीमेंस कॉलेज के अलावा बाहर से छ: सौ से अधिक प्रविष्टियाँ आ चुकी हैं। उन्होंने सभी छात्राओं को निर्देश दिया कि कोविड काल में खुद और परिजनों को सुरक्षित रखें और इस खास प्रतियोगिता में जरूर हिस्सा लें।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तख़्त श्री हरिमंदिरजी पटना साहिब के उपाध्यक्ष और भूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय साइकिलिस्ट सरदार इंदरजीत सिंह ने अपने संबोधन में गुरू तेगबहादुर जी के जीवन और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता वाली तमाम कवायदों के खिलाफ़ उन्होंने सर्वधर्म समभाव की चेतना जगाई। वे त्याग, सेवा और भक्ति की प्रतिमूर्ति थे। धर्मांतरण को उन्होंने मनुष्यता का विरोधी माना और कश्मीरी पंडित कृपाराम के आग्रह पर मुगल शासक की धर्मनीति का प्रतिवाद किया और शहादत पाई। उनकी कुर्बानी हम सभी को संघर्ष और संकल्प के साथ मनुष्यता की रक्षा की सीख देती है।

विशिष्ट वक्ता सोनारी गुरूद्वारा के पूर्व अध्यक्ष, केन्द्रीय गुरूद्वारा प्रबंधन समिति, जमशेदपुर के पूर्व महासचिव व खालसा क्लब, बिष्टुपुर के न्यासी श्री गुरुदयाल सिंह ने कहा कि सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानकदेव ने प्रेम, शांति, भाईचारा, जातिविरोध का दर्शन दिया था जिसकी प्रेरणा खालसा पंथ और गुरू तेगबहादुर जी के विचारों में बीज रूप में मौजूद है। गुरु ग्रन्थ साहिब के 1426 से 1430वें अंग में उनके 59 सबद और 57 श्लोकों में खालसा पंथ की आत्मा बसती है। गुरु तेगबहादुर को जब नौवां गुरू स्वीकार किया गया तो उन्होंने उसे निर्विकार भाव से स्वीकार किया। जबकि उनके पिता गुरू हरगोविंद सिंह छठें गुरू थे। सातवें व आठवें गुरू के रूप में तेगबहादुर जी पर विचार नहीं किया गया। यह प्रसंग दिखाता है कि खालसा पंथ परिवार की अपेक्षा लोकतांत्रिक मूल्यों पर चला है। गुरू तेगबहादुर जी ने  इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ लोकतांत्रिक धर्म का प्रसार करने के लिए अमृतसर से ढाका तक की पदयात्रा की। उनका मानना था कि संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है। इसलिए प्रेम और भाईचारे को आत्मसात करना चाहिए। उन्होंने बताया कि अमृतसर में जो स्वर्ण मंदिर है वहां दो निसान साहिब हैं। बड़ा वाला भक्ति का और छोटा वाला शक्ति का प्रतीक है। इस तरह भक्ति को सर्वोच्च मानते हुए शक्ति के साथ संतुलित जीवन दर्शन ही समूचे खालसा पंथ और गुरू तेगबहादुर जी की मूल चेतना है।

गुरुनानक हाईस्कूल, साकची के शिक्षक श्री कुलविंदर सिंह ने कहा कि भारत सरकार द्वारा गुरू तेगबहादुर जी के चार सौवें प्रकाश पर्व को पूरे देश में मनाने का निर्णय लेना सराहनीय पहल है। खासतौर से तब जबकि हमारे समय में बहुसंख्यकवाद और अल्पसंख्यकवाद की समस्या बनी हुई है। कुछ ऐसी ही समस्या गुरू तेगबहादुर जी के समय में भी थी। उन्होंने ‘न डरिये, न डराइये’ की बात कहकर धर्म या दूसरे किसी भी तरह के वर्चस्ववाद का विरोध किया था। खालसा पंथ का सामाजिक चिंतन बराबरी की बात करता है। सभी सिख स्त्री या पुरुष मूलतः स्त्री हैं और उन सबका रक्षक या पति अकाल पुरूष परमेश्वर है। इसीलिए सिख समुदाय में स्त्री और पुरुष सभी के सिर ढंकने की प्रथा है। गुरु तेगबहादुर राज धर्म और मानव धर्म को परस्पर संवादी मानते हैं। वे चमत्कारवाद के विरोधी थे और अपनी कुर्बानी देकर उन्होंने चमत्कारवाद के खिलाफ संदेश दिया कि मनुष्य का कर्म बड़ा होना चाहिए। चमत्कार हमें अकर्मण्य और कमजोर बनाता है। इस तरह खालसा पंथ को एक क्रांतिकारी तेवर देते हुए गुरू तेगबहादुर ने विविधता और बहुलतावाद का समर्थन किया।

कार्यक्रम की शुरुआत में संगीत विभागाध्यक्ष डॉ. सनातन दीप ने ‘प्रीतम जानि लेहो मन मांहि’ सबद का गायन किया। संचालन प्रोफेसर राजेन्द्र कुमार जायसवाल व धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. श्वेता प्रसाद ने किया। तकनीकी सहयोग के. प्रभाकर राव व ज्योतिप्रकाश महांती ने किया। इस मौके पर काॅलेज के सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं व छात्राओं सहित करीब 670 प्रतिभागियों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *