जिसके हस्ताक्षर से सीओ पर 20 हजार घुस मांगने का आरोप लगा, 34 साल पहले हो चुकी उसकी मौत

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न्यूजभारत20 डेस्क/आदित्यपुर:- जिस शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर से सीओ पर 20 हजार रुपए रिश्वत मांगने का आरोप लगाया, उसकी मौत 34 साल पहले ही हो चुकी है। यह सनसनीखेज मामला डीसी को सौंपे जांच रिपोर्ट में सामने आया है। इस जांच रिपोर्ट के बाद जिला प्रशासन भी सकते में आ गया है। किसी ईमानदार पदाधिकारी के खिलाफ षड्यंत्र रचकर उसे बदनाम करने एवं उसका तबादला कराने के प्रयास का भी खुलासा हो गया है।
यह है मामला
बताया गया कि दस्तावेज ऑनलाइन करने के एवज में अंचलाधिकारी कमल किशोर पर यह आरोप जगन्नाथपुर के रोड संख्या 9 निवासी संतोष तिवारी की ओर से लगाया गया था। तिवारी ने डीसी को दिए आवेदन में जगन्नाथपुर पंचायत की विदामी देवी, पति भुवनेश्वर शर्मा का जमीन संबंधित दस्तावेज का ऑनलाइन करने के एवज में सीओ द्वारा 20 हजार रिश्वत मांगने का आरोप पर कार्रवाई की मांग की थी। इतना ही नहीं इस मामले को मीडिया के माध्यम से उछालकर सीओ के तबादले का भी प्रयास किया था।

प्रशिक्षु आईएएस सह सहायक समाहर्ता ने की जांच

डिप्युटी कलेक्टर पर सीधे रिश्वत मांगने के इस आरोप को डीसी ने गंभीरता से लिया। जिले के प्रशिक्षु आईएएस कुमार रजत को इस मामले की जांच का आदेश दिया। 25 जून को शिकायतकर्ता को बुलाकर उसका बयान दर्ज किया गया। बयान में तिवारी ने बताया कि विदामी देवी द्वारा भूमि दस्तावेजों को ऑनलाइन करने के लिए 18 फरवरी 2024 को अंचल कार्यालय में आवेदन दिया गया था। आवेदन के निपटारे में विलंब होने के कारण इसकी शिकायत तिवारी से की। 13 जून को जब अंचल अधिकारी से बात की तो उन्होंने आवेदन का निपटारा करने का अनुरोध किया जिसके एवज में अधिकारी ने उनसे 20 हजार रुपये रिश्वत की मांग की। जबकि जांच में यह पाया गया कि 12 से 21 फरवरी तक शिकायतकर्ता की ओर से कार्यालय में कोई आवेदन जमा ही नहीं किया गया था।

जांच में सनसनीखेज मामले का हुआ खुलासा

सहायक समाहर्ता की जांच में यह बात सामने आया कि श्रीमती विदामी देवी की मृत्यु 1990 में एवं उनके पति भुवनेश्वर शर्मा की मृत्यु भी 2005 में हो चुकी है। जांच में विदामी देवी का फर्जी हस्ताक्षर करने की पुष्टि हुई, जो तिवारी द्वारा फर्जी तरीके से किया गया था। जांच के क्रम में तिवारी से पूछने पर वह कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। जांच में सीओ के विरुद्ध रिश्वत मांगने के आरोप की पुष्टि नहीं हुई और इसका कोई साक्ष्य भी नहीं मिला।

शिकायतकर्ता पर हो सकती है वैधानिक कार्रवाई

प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार किसी डिप्युटी कलेक्टर पर इस तरह का फर्जी हस्ताक्षर के माध्यम से गंभीर आरोप लगाकर उनकी छवि धूमिल करना, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाना एवं प्रशासन को गुमराह करना आदि मामले पर शिकायतकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है। जिला प्रशासन इस मामले में गंभीरता से विचार कर रही है।

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