आस्था का महापर्व छठ भारत के साथ साथ मॉरीशस और अन्य देशों में भी मनाया जाता है : अंकिता सिन्हा

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जमशेदपुर :– आस्था का महापर्व छठ बिहार समेत देश के कई राज्यों में मनाया जाता है। यह पर्व 8 नवंबर (चतुर्थी) को नहाए-खाए के साथ शुरू होगा और 9 नवंबर (पंचमी) को पूरे दिन उपवास के साथ शाम को खीर और दोस्ती-रोटी का खरना किया जायेगा। कहीं-कहीं पर लोग साथ में केला भी खा लेते हैं। 10 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा जबकि 11 को को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन होगा।

इस त्योहार में श्रद्धालु तीसरे दिन डूबते सूर्य को और चौथे व अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं। पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है जिसमें व्रती लोग स्नान के बाद लौकी की सब्जी, चने की दाल के साथ अरवा चावल का भात सिर्फ एक बार खाते हैं। सब्जी और दाल में सेंधा नमक का प्रयोग होता है। मसाले नहीं डाले जाते। दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है, जब श्रद्धालु दिन भर उपवास रखते हैं, जो सूर्य अस्त होने के साथ ही समाप्त हो जाता है। उसके बाद वे मिट्टी के बने चूल्हे पर गुड़ और दूध के ‘खीर’ और रोटी बनाते है, व्रती पहले खा लेते/लेती हैं। बाद में इसे प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है। आस पास के लोगों/सम्बन्धियों को घर बुलाकर प्रसाद ग्रहण कराया जाता है।

पर्व के तीसरे दिन छठ व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देते हैं। चौथे व अंतिम दिन को पारन कहा जाता है। इस दिन व्रती सूप में ठेकुआ, सठौरा जैसे कई पारंपरिक पकवानों के साथ ही केला, गन्ना, एवं मौसमी फल सहित विभिन्न प्रकार के फल-फूल रखकर उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं जिसके बाद इस पर्व का समापन हो जाता है। पारन में अधिकांश लोग पहले अदरख और गुड़ खाते हैं, गुड़ का शरबत पीते हैं उसके बाद केला आदि फल और ठेकुआ का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

आस्था और श्रद्धा का यह पर्व पहले तो अविभाजित बिहार का ही मूल पर्व कहा जाता था। अब यह बिहार, झाड़खंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है साथ ही इस क्षेत्र के लोग देश-विदेश में जहाँ भी हैं श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं। खासकर मॉरीशस में बिहार प्रांत अधिक संख्या में रहते हैं और वहां की राष्ट्रभाषा की भोजपुरी है। मॉरीशस में छठ के बिहार के तरह बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। अगर मूल रूप से देखा जाय तो यह प्राचीन भारत के मूलवासी या कहें भारतीय किसान का पर्व है. इसमें सूर्य, जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश की पूजा एक साथ होती है।

इनके द्वारा जो भी पृथ्वी पर उत्पन्न होता है वह सभी वस्तुएं प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती हैं। साथ ही इसमें समाज के हरएक वर्ग की सहभागिता भी होती है। जो खुद व्रत नहीं कर पाते वे किसी न किसी रूप में सहयोग करते हैं। कोई घाट की सफाई कर देता है. कोई सड़क रास्ते की सफाई कर देता है। कोई प्रकाश की ही व्‍यवस्था कर देता है तो कोई फल, फूल, धूप, अगरबत्ती या अन्य पूजन सामग्री देकर ही मदद कर देता है।

परिवार या समाज के लोग इसके माध्यम से एक सूत्र में बंधे दिखते हैं। पिछले कुछ सालों से दृश्य मीडिया के द्वारा लाइव प्रसारण पर खूब जोड़ दिया जाता रहा है और देश विदेश के हर स्थानों को लाइव दिखाने का प्रयास किया जाता रहा है। इससे इस महापर्व की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है।

लोकप्रियता बढ़ने से कुछ विवाद होना स्वाभाविक सा हो जाता है। पटना के अलावा मुंबई, दिल्ली, जमशेदपुर, रांची और गुजरात में भी इस बार इस पर्व को प्रमुखता से किया जाता है।
मुंबई महानगर का जुहू स्थित समुद्री तट छठ पूजा की शाम सागर में डूबते लाल-लाल सूर्य और उन्हें अर्घ्य देते छठ व्रतियों से गुलजार हो जाता है। मुंबई में पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोगों की आबादी करीब 40 लाख है। इनमें से छठ पूजा करने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

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