व्यक्ति कब बनता है करोड़पति! जानें ये खास उपाय

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विशेष :- व्यक्ति हमेशा यह कल्पना करता है कि वह धनी हो जाए। प्राचीन ग्रन्थों में ‘लक्षाधिपति’ शब्द मिलता है अर्थात् लाख रुपये का स्वामी। तब कागजी मुद्राएँ नहीं थी। भारत में तो बहुत गायों का स्वामी होने से ही धनी मान लिया जाता था और जब मुद्रा का आविष्कार हुआ तो नगर श्रेष्ठि अर्थात् नगर सेठ की धारणा ने जन्म लिया। परन्तु तब स्वर्ण मुद्राएँ हुआ करती थीं। इसलिए योगों की अवधारणाओं में अब परिवर्तन आ गया है।

आज छोटे से गांव में भी किसी के पास 200-300 गज का प्लॉट भी हो तो ही लक्षाधिपति हो जाता है। इसका अर्थ उस समय का लाख रुपया आज के अरबों रुपयों के बराबर है। ज्योतिष योगों में संशोधन करके लक्षाधिपति को अब अरबाधिपति कर देना चाहिए।

कब होता है व्यक्ति धनी?
परम्परा की ज्योतिष में कुछ शब्द बड़े मजेदार हैं। जैसे चाँदी का पाया। दूसरे, पाँचवें और नवें भाव में यदि चन्द्रमा हों तो वह चाँदी का पाया कहलाता है। इस योग में जन्मा व्यक्ति धनी होता ही चला जाता है। चाँदी के पाए में जन्मा व्यक्ति जन्म से ही विशेष होने लगता है और 50 की आयु प्राप्त होने तक सम्पन्न हो जाता है। ऐसे व्यक्ति साधारण परिस्थितियों से उठकर भी महान बन जाते हैं।

लक्ष्मीनारायण योग –
जिसकी जन्म पत्रिका में बुध ग्रह और शुक्र ग्रह एक साथ एक ही राशि में बैठे हों तो यह लक्ष्मी नारायण योग कहलाता है। ऐसे व्यक्ति धनी होते चले जाते हैं।
कुछ विद्वान केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी ग्रहों को साथ बैठने को भी लक्ष्मी नारायण योग मानते हैं। जन्म कुण्डली के त्रिकोण भाव को लक्ष्मी स्थान माना जाता है। अर्थात् पहले, पाँचवें और नवें भाव को लक्ष्मी स्थान या भाव माना जाता है तथा जन्म पत्रिका के केन्द्र स्थानों को अर्थात् 1, 4, 7 और 10 भावों को नारायण (विष्णु) स्थान माना गया है। इनमें यदि लक्ष्मी और नारायण भावों के स्वामियों का किसी भी भाँति से ज्योतिष में वर्णित सम्बन्ध हो जाएं तो यह लक्ष्मी नारायण योग कहलाता है। यह योग अधिक सार्थक है और व्यक्ति धनी होता चला जाता है।

केन्द्र स्थान भरे हुए हों –
यदि केन्द्र स्थानों में अर्थात् 1, 4, 7 और 10 भावों में सभी में ग्रह स्थित हों तो यह बहुत बड़ा धन योग है।
यदि त्रिकोण स्थानों में कुल मिलाकर 4 या 5 ग्रह हो जाएं तो यह बहुत बड़ा धन योग है।
यदि दूसरे और ग्यारहवें भाव में कई सारे ग्रह उपस्थित हों तो यह महाधनी योग हो जाता है।
यदि लग्न, दूसरा भाव और ग्यारहवें भाव के स्वामी ज्योतिष में वर्णित किसी भी भाँति से परस्पर सम्बन्ध स्थापित करें तो यह महाधनी योग है।
यदि लग्न के स्वामी चौथे भाव में या चौथे भाव का स्वामी लग्न में या लग्न या चौथे भाव के स्वामी में परस्पर दृष्टि सम्बन्ध हो जाए या एक ही राशि में साथ बैठ जाएं तो बहुत सारे जमीन, मकान हो जाते हैं।
यदि पाँचवें या आठवें भाव में कई ग्रह इकट्ठे हो जाएं, परन्तु जन्म के समय, तो यह महाधन योग है।
यह सारे योग जन्म राशि चन्द्र राशि से हों तो भी वही प्रभाव होता है।
दो या तीन ग्रह उच्च राशि में हों या अपने उच्च नवांश में हों तो यह प्रबल धन योग होता है।
इस योग को ज्योतिषी अधिक समझेंगे। यदि केन्द्र भाव के स्वामी पारिजात अंश में हों, उत्तम वर्ग में हों या सिंहासन अंश में हों तो व्यक्ति धनी होता चला जाता है, बल्कि लग्न वर्गोत्तम हो अर्थात् जन्म लग्न और नवांश लग्न एक ही राशि में हो तो व्यक्ति अपने आप ही धनी होता चला जाता है। कई ग्रह भी यदि वर्गोत्तम हो जाए तो भी व्यक्ति धनी होता चला जाता है।
धन बराबर बना रहे, इसके लिए शर्त यह है कि धन योग बनाने वाले ग्रह 6, 8 एवं 12वें भाव के स्वामियों से सम्बन्ध स्थापित न करें।
यदि धन योग बनाने वाले ग्रह अस्त हों, नीच नवांश में हों तो भी धन योग नष्ट हो जाता है।
आठवें भाव का स्वामी ग्रह यदि दूसरे भाव में या ग्यारहवें भाव में बैठ जाएं तो धन योग होते हुए भी धन आता है और जाता है। लक्ष्मी स्थिर नहीं रहती।

वास्तुशास्त्र के धन योग –
वास्तुशास्त्र में कुछ बातें बहुत अच्छी हैं। उनमें ज्योतिष के योगों जैसी जटिलता नहीं होती और आम पाठक भी उसे अच्छी तरह समझ सकता है।
गजपृष्ठ भूमि – यदि किसी भी भूखण्ड में दक्षिण या पश्चिम दिशा में भूमि अधिक ऊँची हो और उत्तर या पूर्व की भूमि नीची हो तो यह गज पृष्ठ कहलाता है। लोक व्यवहार में यदि दक्षिण दिशा में भारी निर्माण हो या पश्चिम दिशा में भारी निर्माण हो या दोनों ही दिशाओं में भारी निर्माण हो तो यह गजपृष्ठ भूमि की श्रेणी में आता है। ऐसे व्यक्ति धनी होते चले जाते हैं।
इसका विपरीत दैत्यपृष्ठ होता है। यह शब्द वास्तुशास्त्र के तकनीकी शब्द हैं। जब पूर्व दिशा भारी हो और पश्चिम दिशा हल्की हो या उत्तर दिशा भारी हो और दक्षिण दिशा हल्की हो तो दैत्य पृष्ठ की संज्ञा में आते हैं। इस तरह की भूमि धन-नाश करा देती है। दुर्घटनाएँ आती हैं।
उत्तर दिशा, पूर्व दिशा में भूखण्ड की बाउण्ड्री पर कुछ वास्तु द्वार ऐसे होते हैं जो व्यक्ति को महाधनी बना देते हैं। कम्पास से गणना करने पर यह द्वार उत्तर दिशा मध्य, पूर्व दिशा मध्य या पश्चिम दिशा मध्य से दाहिनी ओर पड़ते हैं। इन द्वारों की गणना किसी कुशल वास्तुशास्त्री से ही करवानी चाहिए। जरा सी भी गलती होने पर लेने के देने पड़ सकते हैं। सही स्थान पर द्वार होने से, चाहे उस द्वार का एक फीट ही मिल जाए तो महाधनी होने के योग होते हैं।

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