‘सृजन संवाद’ की 131 संगोष्ठी का आयोजन

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जमशेदपुर : जमशेदपुर की साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ‘सृजन संवाद’ की 131 संगोष्ठी का आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर किया गया। शुक्रवार शाम छ: बजे साहित्य अकादमी पुरस्कृत पत्रकार, कहानीकार, उपन्यासकार नासिरा शर्मा प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित थीं। इस कार्यक्रम का संचालन यायावरी वाया भोजपुरी के संस्थापक वैभव मणि त्रिपाठी ने किया। वैभव मणि त्रिपाठी ने स्वागत केलिए ‘सृजन संवाद’ कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. विजय शर्मा को आमंत्रित किया। डॉ. विजय शर्मा ने मंच पर उपस्थित तथा फ़ेसबुक लाइव से जुड़े श्रोताओं/दर्शकों का स्वागत करते हुए बताया कि नासिरा शर्मा को वे धर्मयुग के काल से पढ़ रही हैं। आज वे सृजन संवाद के मंच से अपनी लेखन यात्रा दर्शकों/श्रोताओं से साझा करेंगी।

कहानीकार गीता दूबे ने वक्ता नासिरा शर्मा का परिचय देते हुए बताया साहित्य अकादमी से सुशोभित नासिरा जी को न केवल तमाम पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, वरन उनके कार्य का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। विदेशों खासकर ईरान, अफ़गानिस्तान पर उनका नायाब काम है। आपने ‘सात नदियाँ एक समुंदर’, ‘शाल्मली’, ‘ठीकरे की मंगनी’, ‘पारिजात’, ‘कुंइयांजान’ आदि उपन्यासों के साथ कई कहानियाँ लिखी हैं। आपके रिपोतार्ज खूब पढ़े जाते हैं। आपका फ़िल्मों से भी जुड़ाव रहा है तथा आपने खूब अनुवाद कार्य किया है। गीता डूबे ने उनसे अपनी बात कहने (विषय: मेरी लेखन यात्रा) का आग्रह किया।

करीब एक घंटे में अपनी बात रखते हुए, नासिरा शर्मा ने एक प्रश्न का उत्तर देते हुए विस्तार से बताया कैसे वे ईरान पहुँची तथा उन्होंने खुमैनी के साथ-साथ कई बड़े-बड़े लोगों के साक्षात्कार लिए। वे एक निर्भीक पत्रकार रही हैं उन्होंने जो देखा वही लिखा। बनना तो वे चाहती थीं कुछ और मगर लेखन उन्हें किसी और दिशा में बहा ले गया। उन्हें अच्छा लगा कि उन पर ईरान के अलावा अन्य देशों पर उनके किए गए काम पर यहाँ प्रश्न पूछे जा रहे हैं और उन्होंने इसी संदर्भ में अफ़गानिस्तान तथा पाकिस्तान के अपने अनुभव साझा किए। अफ़गानिस्तान के आम लोग उस समय भी कठिनाई में थे।

उन्होंने ऐसी कहानियाँ और उपन्यास लिखे जिसमें औरत-आदमी दोनों की बात आती है क्योंकि एक समय स्त्री विमर्श की बनावट ऐसी थी जिसमें पुरुषों को औरत का दुश्मन मान कर अलग रखा जाता था। औरतों की बात खूब हो रही थी, आदमी की बात न आदमी लिख रहे थे और न औरतें। मगर वे ऐसा नहीं मानती हैं। उनका मानना है कि दोनों सदा संग, आसपास रहते हैं अत: दोनों की बात होनी चाहिए।

नासिरा शर्मा ने अपने लेखन में विदेशी भूमि के अलावा इलाहाबाद, बिहार आदि में भी अपने कथानक स्थापित किए हैं। इलाहाबाद में उनका बचपन बीता, दिल्ली, इंग्लैंड में वे बहुत कम उम्र में रह रही थीं। लिखना-पढ़ना उन्हें विरासत में मिला है। उन्हें देश से अधिक विदेश के खासकर ईरान के लोगों ने लिखने केलिए प्रेरित व उत्साहित किया। करीब एक घंटे से ऊपर चले इस कार्यक्रम में नासिरा शर्मा ने अपनी बात विस्तार से रखी तथा प्रश्नों के उत्तर भी दिए।

कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन जाने-माने कहानीकार अख्तर आज़ाद ने नासिरा शर्मा के वक्तव्य पर टिप्पणी करते हुए दिया। कार्यक्रम में सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव के माध्यम में देहरादून से सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, जमशेदपुर से डॉ.क्षमा त्रिपाठी, डॉ. मीनू रावत, गीता दूबे, अर्चना, अरविंद तिवारी, जोबा मुर्मू, राँची से तकनीकि सहयोग देने वाले ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी, दिल्ली से न्यू डेल्ही फ़िल्म फ़ाउंडेशन के संस्थापक आशीष कुमार सिंह, रक्षा गीता, भूपेंद्र कुमार, बड़ौदा से रानो मुखर्जी, गोरखपुर से पत्रकार अनुराग रंजन, बैंग्लोर से पत्रकार अनघा, लखनऊ से डॉ. मंजुला मुरारी, डॉ. राकेश पाण्डेय आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। जिनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और समृद्ध हुआ। सबकी सहमति रही कि नासिरा शर्मा को पुन: आमंत्रित किया जाए क्योंकि बातें अभी समाप्त नहीं हुई हैं। ‘सृजन संवाद’ की दिसम्बर मास की गोष्ठी (132वीं) सिनेमा पर होगी। इसी सूचना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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